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चार श्रम कानून के विरोध में दल्ली राजहरा के संयुक्त ट्रेड यूनियन के तत्वाधान में की गई हड़ताल हुई सफल …!

दल्ली राजहरा गुरुवार 10 जुलाई 2025 भोज राम साहू 9893765541

केंद्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन के आह्वान पर दल्ली राजहरा में संयुक्त ट्रेड यूनियन के द्वारा कल 9 जुलाई को एक दिवसीय हड़ताल किया गया l इस हड़ताल में माइंस में काम करने वाले कर्मचारियों ने तीनों शिफ्ट में काम में नहीं जाकर हड़ताल का समर्थन किया l कर्मचारियों के द्वारा केंद्र द्वारा पुराने श्रम कानून को हटाकर उसके जगह चार नए कानून लागू करने के विरोध में यह हड़ताल किया गया था l कल सुबह से ही मजदूर यूनियन के समर्थक कर्मचारियों के द्वारा दल्ली माइंस के गेट माइन्स ऑफिस जैसे विभिन्न जगहों पर एकत्र होकर काम में जाने वाले कर्मचारियों को हड़ताल के बारे में जानकारी दे रहे थे l कि सरकार के विरोध में हड़ताल क्यों अति आवश्यक है हड़ताल होने से हमारी रोजी-रोटी सुरक्षित रहेगी l यदि श्रम कानून लागू होता है तो मालिकों को शोषण करने का पूरा अधिकार हो जाएगा l हम अपना मान नहीं मनवा सकते l फिर से बंधुआ मजदूरी प्रथा देश में लागू हो जाएगा कल सुबह से ही जोरदार बारिश हो रही थी जो रात तक जारी था l लेकिन हड़ताल के समर्थन में लोग विभिन्न जगहों पर डटे रहे l

 छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के अध्यक्ष सोमनाथ उइके ने बताया कि

केंद्रीय ट्रेड यूनियन के आह्वान पर पूरे भारत में सभी श्रम संगठनों के द्वारा आज 9 जुलाई को एक दिवसीय हड़ताल की घोषणा की गई है l जिसका हमारा दल्ली राजहरा के संयुक्त ट्रेड यूनियन पूरी तरह समर्थन करता है l जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी जी 44 श्रम कानून को बदलकर उसके जगह चार नए कानून ला रहा है l उससे काफी खतरा महसूस हो रहा है l क्योंकि जो पहले 8 घंटे का कार्य दिवस होता था उसे अब 12 घंटे करने की तैयारी है l महिलाओं को दिन में ड्यूटी करने प्रावधान था लेकिन उसे अब नाइट ड्यूटी लगाने का प्रयास किया जा रहा है l जिससे हमें उनकी दैहिक शोषण होने की संभावनाएं नजर आ रही है l ग्रेजविटी के संबंध में हमें सैयस है और सरकार ने जो भी कानून बनाया है वह पूरी तरह से ठेकेदारों और उद्योगपतियों के समर्थन में बना है हम उनका विरोध करते हैं l

 

🔥🌺दल्ली राजहरा के मजदूर यूनियन क्यों कर रहे हैं विरोध🌺🔥

श्रमिक संगठन हिंदुस्तान स्टील इंप्लाइज यूनियन  (सीटू) के द्वारा जारी हड़ताल के संबंध में पत्र के अनुसार पुराने कानून में मजदूरों की मूल वेतन महंगाई भत्ता ओटी छुट्टी पैसा आदि शामिल था l पर नए कानून में केवल मूल वेतन तथा DA शामिल है l मजदूरों के पास इसके लिए कोई कानून रास्ता नहीं है l कोड में न्यूनतम मजदूरी की परिभाषा के साथ गणना के फार्मूला नहीं है l कोड में अपने मांगों के लिए कानूनी हड़ताल पर वेतन कटौती का प्रावधान है l समान काम समान वेतन की अवधारणा इस कोड में खत्म हो जाएगी l मजदूर ,मलिक के शर्तें पर काम करेंगे क्योंकि उन पर नौकरी खत्म करने की तलवार लटकती रहेगी l मजदूरों को बिना सरकारी मंजूरी के काम से निकालना आसान हो जाएगा l यूनियनों की मान्यता पर बाधा बनेगी l आईआर कोड ने न्यायालय के श्रम न्यायालय को समाप्त कर दिया है l

हड़ताल के लिए सुलह प्रक्रिया बहुत जटिल है इसके लिये 60 दिनों की नोटिस देना होगा l परमिशन मिलने पर ही हड़ताल कर सकते हैं पीएफ केवल उन प्रतिष्ठानों पर लागू होगी जहां पर 20 से अधिक कर्मचारी होंगे l पीएफ में अंशदान 12% से घटाकर 10% कर दिया गया है l असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए कोई भी योजना इस बिल में तय नहीं की गई है l 

कोड ठेका प्रथा को आगे बढ़ाता है l 50 से कम कर्मचारी रखने वाले ठेकेदारों को लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं होगी , जबकि पहले यह 20 था l इससे ठेकेदारों को श्रमिकों को शोषण करने की छूट मिलेगी l सुरक्षा समिति पर 500 या उसे अधिक मजदूर वाले कारखाना या प्रतिष्ठा में गठित की जाएगी l 250 कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों में वेलफेयर का प्रधान नहीं होगा l

 कारखाना आधारित यूनियनें ₹18,000 से अधिक वेतन वाले मज़दूर, मज़दूर की परिभाषा से बाहर होंगे lबोनस के लिए अब कंपनी की बैलेंस शीट की जांच करके मांग नहीं कर सकते। फिक्सड़ टर्म के जरिए कारखाने में पक्के मज़दूरों की ताकत को कम किया जाएगा। नौकरी  जाने के डर से फिक्सङ् टर्म मज़दूर यूनियन से जुड़ने से और कतराएंगे।

 आज की तारीख में पीएफ, ईएसआई और ग्रेड हासिल करने के लिए मज़दूर एकजुट होकर कानूनी कार्रवाई कर सकते थे। पर, कोड में इंस्पैक्टर शिकायत पर जांच ही नहीं कर सकता और इस तरह अब ऐसा कर पाना लगभग असंभव है।
छोटे-मझौले कारखानों में हर साल सैकड़ों मज़दूर दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा रहे हैं। लेबर कोड मालिकों को सुरक्षा इंतजामों की जिम्मेदारी से मुक्त करता है। इसका मतलब है लेबर कोड के बाद न तो जान की कानूनी गारंटी और न ही माल की!

2008 में असंगठित क्षेत्र के अलग कल्याण बोर्ड बनाने का कानून आया था। अब लेबर कोड उसे ठंडे बस्ते में डाल रहा है। इसका मलतब है रेहड़ी-पटरी समेत बाकी तमाम सैक्टर के लाखों मज़दूरों के लिए कोई भी सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई प्रावधान नहीं हैl

 सरकारी क्षेत्र के कर्मचारी समान काम के लिए समान वेतन को लेबर कोड निरस्त्र करता है। इससे ठेका प्रथा  बेलगाम होगी  । पहले से ही घट रहे रेगुलर कर्मचारियों की ताकत  कम होगी ।

Bhojram Sahu

प्रधान संपादक "हमारा दल्ली राजहरा: एक निष्पक्ष समाचार चैनल"

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