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हमारा दल्ली राजहरा के संडे मेगा स्टोरी रविवार 14 सितंबर के अंक में पढ़िए बेघर और बेमौत मर रहे गौवंश की कहानी !

दल्ली राजहरा सोमवार 15 सितंबर 2025 भोज राम साहू 98937 65541

हमारा दल्ली राजहरा के संडे मेगा स्टोरी रविवार 14 सितंबर 2025 के अंक में पढ़िए बेघर और बेमौत मर रहे गोवंश की कहानी ! गाय को मां का दर्जा देने वाली यह देश में आज गोवंश की दशा दयनीय हो गई है l

 यह वही भारत देश है जहां जग के पालनहार भगवान श्री विष्णु ने द्वापर युग में श्री कृष्ण  गाय की सेवा और उनकी रक्षा करने के लिए अवतार लिए l बच्चों और बीमार के अलावा व्यक्ति के जीवन के रक्षा के लिए  गाय का दूध सर्वोत्तम माना जाता है इसलिए उन्हें मां का दर्जा देकर सम्मान भी दिया जाता है l लेकिन वर्तमान  मे इनकी स्थिति  दयनीय हो गई है l किसानों के काम आने वाले गोवंश बैल अब आधुनिक युग में मशीनीकरण होने के कारण अनुपयोगी हो रहे हैं l एक समय था जब गोवंश जिसमें गाय बैल बछड़े भैंस को जोड़ा जाता है किसानों का उपयोगी साथी हुआ करता था l इनके बिना कृषि कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी l क्योंकि बैल कृषि कार्य में सामान लाने ले जाने का काम करता था तथा खेतों की जुताई बियासी फसल के कटाई के उपरांत कोठार (संग्रहण केंद्र ) तक ढुलाई एवं उसकी मिजाई का काम आता था l परिवार के साथ परिवहन के लिए बैल गाड़ी के उपयोग में काम आता था l लोग शादी विवाह तथा अन्य जगहों पर जाने के लिए भी बैलगाड़ी का उपयोग करते थे l गाय का दूध को परिवार के पीने चाय एवं दूध दही घी के रूप में लोग उपयोग करते थे l खेतों से निकलने वाले पैरा तिलहन दलहन के अवशेष इनके भोजन के काम आता था l तथा गौवंश के गोबर से लोग कंडे के अलावा खाद भी बनाते थे l जो खेतों में उपयोग के लिए सर्वोत्तम माना जाता था l
गांव में ऐसा कोई घर नहीं होता था जिनके यहां गौवंश नहीं मिलते थे l धार्मिक कार्यों साधु संत एवं किसी परिजन को देने के लिए गौदान सबसे बड़ा दान माना जाता था l

धीरे-धीरे समय बदला और कृषि कार्य में ट्रैक्टर के अलावा हार्वेस्टर जैसे अन्य आधुनिक मशीनों ने अपनी जगह बना ली l कम समय और अधिक फायदा के लिए लोग इसका उपयोग करने लगे है गोबर खाद के बजाय अब रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं l किसान अनुपयोगी हो रहे गौवंश को गांव गांव घूमने वाले खरीदार को बेचते थे जिसे वे लोग कत्ल खाना ले जाकर बेच देते थे l सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया तथा गौ तस्करी रोकने के लिए कड़ी कानून भी बना दिया l अब पशुपालक गौवंश को घर से बाहर निकाल दिया है l बेघर और लाचार होकर अब ये सड़कों और गलियों में भटक रहे हैं l दिन प्रतिदिन इनकी संख्या में वृद्धि होने के कारण ये किसी भी समय सड़को पर आकर बैठ जाते हैं l जिसके कारण आए दिन होने वाली दुर्घटना में कई लोगों की मौत हो रही है l सबसे भयानक स्थिति रात के समय होती है l जब ये सड़कों पर ये बैठे होते हैं तब दूर से आ रही गाड़ी चालक को दिखाई नहीं देते l गति अधिक होने के कारण कई बार इनकी मौत हो जाती है l तो कई बार दो सांड अपनी वर्चस्व की लड़ाई लड़ने के लिए इतने मशगूल हो जाते हैं कि अगल-बगल में खड़े व्यक्तियों को नहीं देख पाते जिसके कारण उनकी लड़ाई में ज़नधन को नुकसान होता है l अब गौवंश इतने खूंखार होते जा रहे हैं कि ये कभी भी किसी  को अपना शिकार बना देते हैं  तथा सड़कों पर खड़े दोपहिया वाहन की डिक्की से भी रखे सामान को भी नुकसान पहुंचाते हैं l 
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गौवंश की रक्षा के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमें प्रमुख था l गोधन न्याय योजना जिसे 21 जुलाई 2020 को लागू किया गया था l इस योजना का उद्देश्य था जैविक खेती को बढ़ावा देना , ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा करना और गौ पालन के संरक्षण को बढ़ावा देना था l इस योजना के तहत के तहत गांव और शहरों में घूमने वाले गौवंश की चिकित्सा सुविधा आदि की व्यवस्था करने की योजना थी l तथा इससे निकालने वाली गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने की योजना सरकार के द्वारा लाई गई थी l साथ ही उन्होंने पशुपालकों के लाभ के लिए गोबर खरीदी के लिए भी योजनाएं लाई थी l
अब भाजपा सरकार ने गौधाम योजना ला रही है l जिसके तहत प्रत्येक गौधाम में  200 पशु रखे जाएंगे l इसके चरवाहों को ₹10916.00 रुपए प्रति माह और गौ सेवको को ₹13126.00 रुपए प्रति माह की मानदेय दिया जाएगा तथा उत्कृष्ट गौधन में प्रत्येक पशु के लिए पहले वर्ष ₹10 दूसरे वर्ष ₹20 तीसरे वर्ष ₹30 तथा चौथे वर्ष 35 रुपया दिया जाएगा l यह योजना कब से लागू होगी यह तो समय बताएगा l 
गौ धन की वर्तमान में हो रही दुर्दशा के संबंध में विशेष विचार आमंत्रित किये गये थे जिसमें 

 टीकम पिपरिया (वरिष्ठ पत्रकार एवं अध्यक्ष सिटी प्रेस क्लब जिला बालोद )

 ने कहा कि सचमुच आज गोवंश की रक्षा एक बड़ी समस्या बन गई है। गोवंश के प्रति लोगों का रुझान बहुत तेजी के साथ कम हुआ है। गांव में जिन घरों में दो-दो दर्जन मवेशी हुआ करते थे उनके घरों में अब एक दो ही मवेशी बचे हैं। बल्कि गांव में तो लोग मवेशियों को ओने पौने में भी बेच दे रहे हैं। मुझे लगता है गोवंश पालन को लेकर सरकार तमाम सुविधाएं देने की कोशिश तो कर रही है लेकिन लोग आधुनिकता के चक्कर में गोवंश पालन से दूर होते जा रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा खत्म सी होती जा रही है। मेरे पूर्वज गोपालन को बहुत महत्व देते थे मैंने कब महत्व दिया और अब मेरे बच्चे तो बिल्कुल भी महत्व नहीं दे रहे। इसका कारण यही है कि खेती के बजाय हम नौकरी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। और नौकरी करेंगे तो गोपालन के लिए समय नहीं बचेगा। आने वाले समय में यह बहुत ही गंभीर समस्या हो जाएगी पहले हम घरों में खेती किसानी के लिए बछड़ा, बैल पालते थे अब आधुनिकता के चक्कर में बैलों से तो खेती खत्म ही हो गई है ऐसे में गोपालन सचमुच एक बड़ी समस्या बन जाएगी।

 टी ज्योति पार्षद ( वार्ड नंबर 26 दल्ली राजहरा समाजसेविका एवं छत्तीसगढ़ी जस गीत एवं लोकगीत गायिका )

गोवंश हमारी धरोहर, इनकी रक्षा हमारा कर्तव्यगोवंश सिर्फ पशु नहीं, हमारे कृषि और संस्कृति की रीढ़ हैं। सड़कों पर भटकते गोवंश का  हम कारण बनते हैं, इन्हें सुरक्षित गौशालाओं तक पहुँचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।
किसानों को चाहिए कि पराली जलाने के बजाय उसे चारे और खाद के रूप में उपयोग करें, ताकि गोवंश को भोजन मिल सके l सरकार को चाहिए कि गोवंश संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाए और हर पंचायत स्तर पर “गोसेवा केंद्र” बनाए। समाज के हर वर्ग को यह प्रण लेना चाहिए – “गोवंश की सेवा ही सच्ची राष्ट्र सेवा है।”आइए, मिलकर संकल्प लें:
न भूखे गोवंश को सड़कों पर छोड़ेंगे, न इन्हें असुरक्षित होने देंगे।”
देश में सरकार के प्रतिबंध के बावजूद गोवंश की तस्करी जारी है सरकार लाख चाहने के बावजूद भी इसे रोक नहीं पा रही है l राजधानी रायपुर में एक गौ सेवक ने गौ माता को राज्य पशु घोषित करने की मांग को लेकर अपनी उंगली काट ली थी l जिस तरह से सड़कों पर गौवंश की हत्या हो रही है उनके कारण मानव भी अकाल मृत्यु पा रहे हैं l जनधन की हानि हो रही है l इसको रोकने का एक ही विकल्प है इन्हें संग्रहित कर रखा जाए l इनकी भोजन आदि के लिए किसानों के ऊपर भी प्रतिबंध लगाया जाए l सरकार के द्वारा कई योजनाओं के तहत किसानों को तो लाभ दिया जाता है लेकिन उन्हें लाख निर्देशित करने के बावजूद कृषि से उत्पन्न होने वाले पैरा को जला दिया जाता है l जबकि सरकार के द्वारा किसानों को निर्देशित किया गया है कि पैरा को गौ सेवा केंद्र आदि में भिजवाए या जमा करें l जिस आधुनिकता के दौड़ में हम अपनी पुरानी परंपरा को त्यागते जा रहे हैं उसका परिणाम भी दिख रहा है l

“संडे मेगा स्टोरी में आज बस इतना ही”

Bhojram Sahu

प्रधान संपादक "हमारा दल्ली राजहरा: एक निष्पक्ष समाचार चैनल"

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