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रंग पिचकारी और नगाड़ा से सजा बाजार नगाड़ा बेचने वाले मायूस नहीं आ रहे हैं खरीदार

दल्ली राजहरा

गुरुवार 13 मार्च 2025

भोज राम साहू 9893765541

 

दल्ली राजहरा के बाजार में तरह-तरह के पिचकारी और कम रंगों के गुलाल कई जंगली जानवर के मुखौटा आदि से सज गया है l रंग गुलाल और मुखौटा की खरीदारी तो हो रही है लेकिन नगाड़ा बेचने वाले मायूस बैठे हुए नजर आ रहे हैं l नगाड़ा खरीदने वालों की आकाल सा पड़ गया है l दल्ली राजहरा में 50_ 60 किलोमीटर से आए हुए नगाड़ा व्यापारी भी मायूस नजर आए l वह सह परिवार नगाड़ा बेचने के लिए दल्ली राजहरा पहुंचे हैं l उन्होंने बताया कि उनके पास 150 रुपया जोड़ी डमरू पिटवा ₹ 250 रुपए जोड़ी तथा ₹3000 तक नगाड़ा की जोड़ी उपलब्ध है l पिछले वर्ष जो डमरू ₹100 में बिकता था और नगाड़े की कीमत लगभग ₹3000 की थी वह आज भी उसी कीमत पर डेढ़ सौ से ₹3000 तक कीमत में बिक रहा है l लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से कीमत में बढ़ोतरी हुई है l नगाड़ा के महंगाई पर उन्होंने बताया कि नगाड़ा में उपयोग होने वाले मिट्टी के बर्तन की कीमत कुम्हारो के द्वारा बढ़ा दी गई है तथा पशुओं की खाल की कीमत भी पिछले वर्ष के मुकाबले में इस वर्ष बढ़ा है l इसलिए नगाड़ा की कीमत में वृद्धि की गई है l

 

बताया की स्थिति अभी खराब है नगाड़ा खरीदने वाले लोग अभी नहीं आ रहे हैं शाम को आने की संभावना है l पारंपरिक नगाड़े के बजाय प्लास्टिक के पन्नी वाले बाजे आने से बिक्री में कमी आई है l

 

 

आधुनिकता के दौड़ में पारंपरिक त्योहार समाप्ति की ओर है एक समय था जब होली के 15 दिन पहले से ही शाम होते ही चारों तरफ नगाड़ा की आवाज से गूंज उठता था l बड़े बुजुर्ग के साथ बच्चे भी नगाड़ा के पास बैठकर फाग गीत गाया करते थे l
कल बस स्टेशन के पास कुछ गांव वालों की टोली देखी जो पारंपरिक गीतों पर कठपुतली और हाथ से बने बंदर को कठपुतली के ही तर्ज पर नचा रहे थे l आज चिखलकसा में देखने को मिला पहले की तरह बच्चे भी रोड पर खड़े होकर आने जाने वालों को रोक कर पैसे की मांग कर रहे थे l जो परंपरा लगभग विलुप्त सी हो गई थी वह आज फिर नन्हे मुन्ने बच्चों ने जीवंत कर दी l पहले चार आने आठ आने जो मिलता था वह अब ₹10 से ₹20 तक आ गया है l बच्चों ने बताया कि सुबह लगभग 1:00 बजे तक उन लोगों ने ₹400 से ऊपर तक पैसा जमा कर लिए थे l गांव से शहर आकर फाग गाने वालों की टोली और नगाड़े की धूम पर नाचने वाले लोग इस साल नजर नहीं आए l

गांव में होली का आनंद ही कुछ और होता था होलिका दहन के दूसरे दिन शाम को पूरे गांव महिला पुरुष बच्चे बुजुर्ग सभी एक जगह एकत्र होते थे l रंग गुलाल खेलते नगाड़ा के थाप के साथ फाग गीत के अलावा पुरुषों और बच्चों के द्वारा गोल घेरा बनाकर डंडा नाच हुआ करता था लेकिन यह सब वर्तमान में बीते दिनों की बात हो गई है l होली की पौराणिक त्यौहार में बदलाव आ गया है l लोग नगाड़ा के बजाय डीजे की के धुन पर नाच कर त्योहार मनाना पसंद कर रहे हैं l

Bhojram Sahu

प्रधान संपादक "हमारा दल्ली राजहरा: एक निष्पक्ष समाचार चैनल"

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