“संसार में ईश्वर से बढ़कर कोई नहीं हुआ , उनकी शक्ति के सामने हम सब नत मस्तक हैं l” :— श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन प्रवचनकर्ता महराज सौरभ शर्मा ने कहा l

दल्ली राजहरा
बुधवार 22 जनवरी 2024
भोज राम साहू 9893765541
वार्ड नंबर दो रामनगर चौक पंडर दल्ली, में 18 जनवरी 2025 से 24 जनवरी 2025 तक श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ का आयोजन वार्ड की सर्व महिला समिति रामनगर चौक की एवं नगर वासियों के द्वारा किया जा रहा है l श्रीमद भागवत कथा प्रवचन कर्ता भागवताचार्य बाल्य व्यास पंडित सौरभ शर्मा ने कथा की पांचवें दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा बताये उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार लिए जिनमें मत्स्य अवतार , कूर्म अवतार , वराह अवतार , नरसिंह अवतार , वामन अवतार, परशुराम अवतार , राम अवतार , कृष्ण अवतार , और कलिक अवतार जो कलयुग में होने वाला है ,प्रमुख है l इसमें आज कथा के माध्यम से भगवान विष्णु की वामन अवतार की कथा उन्होंने बतलाई l महाराज जी ने कहा कि
महाबली एक शक्तिशाली असुर राजा था, जो अपने पिता हिरण्यकश्यप की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठा था। वह एक न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजा था, लेकिन उसकी शक्ति और प्रभाव से देवता भयभीत हो गए थे। देवताओं और असुरों के मध्य युद्ध हुआ था जिसमें देवताओं को हार का सामना करना पड़ा था l
देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे राजा बली को पराजित करें और देवताओं की रक्षा करें। भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और वामन अवतार लेने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर एक ब्राह्मण के रूप में महाबली के दरबार में प्रवेश किया। भगवान विष्णु की कूटनीति को राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य समझ गए थे l उन्होंने राजा बाली को आगाह कर दिया था कि वामन रूप में भगवान विष्णु आए हुए हैं l राजा बाली ने वामन अवतार में भगवान विष्णु को सम्मान सहित आसन पर बैठाया प्रणाम किया और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बली से तीन पग भूमि का वरदान मांगा। महाबली ने इस वरदान को स्वीकार कर लिया l गुरु शुक्राचार्य ने महाबली को पहले ही आगाह कर दिया था लेकिन महाबली ने अपने गुरु की सलाह को नजरअंदाज कर दिया और वामन को तीन पग भूमि का वरदान दे दिया। वामन ने अपने पहले पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया, अपने दूसरे पग में आकाश को नाप लिया, वामन अवतार में भगवान विष्णु ने कहा राजा बली पहले पग में धरती तो दूसरे पर में मैंने आसमान में रख दिया l अब बताओ तीसरा पग कहां रखूं l राजा बलि ने भगवान वामन के सामने अपना सिर रख दिया और तीसरे पग वामन रूप में भगवान विष्णु ने महाबली के सिर को नाप लिया। इस प्रकार, महाबली की पराजय हुई और वह पाताल लोक में चला गया। श्रीमद् भागवत कथा एवं पद्म पुराण के अनुसार. भगवान विष्णु वामन अवतार में राजा बलि से कहा मैं आपके त्याग और दान से खुश हूं मांगो क्या मांगते हो ! राजा बलि ने कहा भगवान मैं चाहता हूं कि आप मेरे द्वारपाल बन कर रहे भगवान विष्णु ने भक्त की विनय को स्वीकार कर लिया और राजा बलि की द्वारपाल बन गए l माँ लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को ढूंढते हुए पाताल लोक गए तब उन्होंने देखा कि भगवान विष्णु द्वारपाल बने हुए हैं l मां लक्ष्मी ने एक ब्राह्मणी का रूप धारण किया और राजा बलि के हाथों में रक्षा सूत्र बांधी थी l राजा बलि ने उन्हें दान मांगने को कहा तब उन्होंने भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ भेजने का आग्रह की l राजा बलि ने मां लक्ष्मी की शर्त मान ली और भगवान विष्णु को मुक्त कर दिया l उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी तब से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है l इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती है और उनकी सुरक्षा और सुख समृद्धि की कामना करती है l इसलिए यह श्लोक आज भी पंडितों के द्वारा हाथों में रक्षा सूत्र बांधने के समय बोला जाता है l
येन बधो बलि राजा , दानविद्रो महाबल: तेंन तवाम प्रतिबधनामी रक्षे माचल माचला:
वामन अवतार की कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की शक्ति और प्रभाव के आगे कोई भी नहीं टिक सकता। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने अहंकार और अभिमान को त्याग देना चाहिए और भगवान की शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।
कथा के मध्य में महाराज ने कहा कि व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा सम्मान और धन का मोह नहीं करना चाहिए l संसार में भगवान से बढ़कर कोई नहीं हुआ ईश्वरीय शक्ति के सामने हम सब छोटे हैं परिवार समाज या फिर आपके मोहल्ले में जब भी धार्मिक या फिर कोई भी आयोजन हो और आप नेतृत्व कर रहे हो तो सभी को साथ लेकर चलें l मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जब श्रीलंका जाने के लिए सेतु बना रहे थे l तब सभी जीवो ने अपने सामर्थ्य के अनुसार सेतु बनाने में मदद किया था l जिसकी जैसी सामर्थ हुई वह आपका वैसे ही सहयोग करेंगे l कोई श्रम से , कोई मन से तो कोई धन से करेंगे आयोजन में सभी का सहयोग आवश्यक है l साथ ही आपको सभी को साथ लेकर और सभी का सहयोग और सामर्थ्य लेकर काम करना होगा l तभी आपका कार्य फलीभूत होगा l किसी के मन को मार कर मंदिर नहीं बनाया जा सकता l मंदिर बनाने के लिए चींटी से लेकर हाथी तक की सहयोग आवश्यक है l आप चारों धाम यात्रा कर ले और घर में आकर अपने परिवार मोहल्ले समाज में छोटों का आदर और बड़ों का सम्मान करना नहीं सीखा तो आपका चारों धाम का यात्रा व्यर्थ है l यदि आपने घर परिवार में रहकर सब का सम्मान और भगवान में अपना मन लगाकर हमेशा स्तुति करते रहे तो आपको चारों धाम की यात्रा की आवश्यक नहीं है l भगवान आप का मनोकामना पूर्ण करेगा l