हस्ताक्षर साहित्य समिति के द्वारा पद्मश्री सुरेंद्र दुबे को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक विशेष आयोजन किया गया, इस अवसर पर स्वर्गीय दुबे जी के साहित्यिक योगदान और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई,,,हास्य के कोकड़ा और ठहाका के परिंदा के नाम से मशहूर दुबे जी का छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी भाषा के उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है,,मंचों पर उनका जादू सबके सर चढ़कर लगभग तीन दशक तक रहा है,,,उन्होंने एक स्वस्थ हास्य और व्यंग्य की रचना का एक जीवन मंचों पर जिया है,,
अध्यक्ष संतोष ठाकुर जी,,घनश्याम पारकर जिन्होंने उनके साथ कई बार मंच साझा किया है,,,उन्होंने उनके साथ बिताए गए समय के बारे में चर्चा की । घनश्याम पारकर अपनी इन पंक्तियों के साथ सुरेन्द्र दूबे को श्रध्दांजलि अर्पित किए-
हंसी के फूल जो हर दिल में खिला गए,
शब्दों के मोती से जग को सजा गए!
छत्तीसगढ़ की माटी का वो लाल था,
हास्य, व्यंग में डूबा एक कमाल था !!
हस्ताक्षर साहित्य समिति के अध्यक्ष संतोष ठाकुर ने अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से डाक्टर सुरेन्द्र दूबे को भाव सुमन अर्पित किए-
हंसी के खज़ाना लुटइया,
रोवत मने ल हंसइयाकर दिस सुन्ना!
छत्तीसगढ़ लरोवा के चल दिस भईया !!
साथ ही जे आर महिलागे ,,सरिता गौतम ,,शमीम सिद्दकी ,,गोविंद कुट्टी पाणिकर ,,और संचालक अमित प्रखर ने उनकी रचनाओं का पाठ कर,,श्रृद्धांजलि अर्पित की,,,कार्यक्रम के अंत में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना की गई।।।