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लौह नगरी दल्ली राजहरा में धूमधाम से मनाया गया महाशिवरात्रि महापर्व l

दल्ली राजहरा
गुरुवार 27 फरवरी 2025
भोज राम साहू 989375541
दल्ली राजहरा कल पूरा शिव मय रहा चारों तरफ भगवान शिव की महा आरती , पूजन , ओम नमः शिवाय , हर हर महादेव , की गूंज होती रही l लोग सुबह से ही महादेव को जल चढ़ाने उनकी पूजा आराधना करने के लिए मंदिरों और शिवालियों की ओर जा रहे थे l वार्डों में स्थापित किए गए शिवलिंग पर पूजा करने थाली में बेलपत्र आक के फूल धतूरा नारियल लेकर पूजा अर्चना करने महिलाएं और लड़कियां पहुंच रही थी साथ ही पुरुषों भी मंदिरों में पूजा करने के लिए जा रहे थे l दोपहर बाद मंदिरों में भंडारा का आयोजन किया गया जहां गुप्ता चौक स्थित हनुमान मंदिर में ,एवं श्री राम हिंदू संगठन के द्वारा जैन भवन चौक पर भंडारे का आयोजन किया गया था l आज दूसरे दिन भी रामनगर चौक जैसे कुछ जगह पर भंडारे का आयोजन किया जा रहा है l
दल्ली राजहरा में शिव संस्कार धाम की ओर से शिवरात्रि पर्व को बड़े ही पारंपरिक और अंदाज में धूमधाम से मनाया गया l इस आयोजन के तहत शिव संस्कार धाम मे शिव संस्कार धाम समिति और बोल बम कांवरिया समिति के द्वारा महाशिवरात्रि पर्व पर दो दिवसीय आयोजन किया गया था l प्रथम दिन संध्या रुद्राक्ष भजन माला दिनेश वर्मा के द्वारा रंगा रंग प्रस्तुति दी गई तथा महाशिवरात्रि पर सुबह रुद्राभिषेक पूर्णहूती की गई l साथ ही मां पार्वती एवं महादेव की वरमाला का आयोजन किया गया जिसमें हल्दी रस्म निभाई गई l
शिव बारात के रूप में भगवान शिव के स्वरूप मानव को नगर भ्रमण कराया गया l शिव बारात शिव संस्कार धाम से निकलकर माइंस आफिस चौक से पुराना बाजार वीर नारायण सिंह चौक से वापस गुप्ता चौक होते हुए बस स्टेशन स्थित शंकर गुहा नियोगी चौक से थाना चौक होते हुए टाउनशिप भ्रमण कर वापस शिव संस्कार धाम पहुंचे l जहां पर शिव बारात का स्वागत शिव संस्कार धाम के पदाधिकारी एवं बोल बम का बढ़िया समिति के द्वारा किया गया l विशाल मंच पर वरमाला एवं भगवान शिव के महा आरती हुई संध्या सभी भक्तजनों के लिए विशाल भंडारा का आयोजन किया गया था l
क्या है शिव रात्रि का महत्व
ईशान संहिता में कहा गया है कि भगवान् शिव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि वाले दिन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए थे। इसलिए इस तिथि वाले दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा। लेकिन इसके अलावा भी महाशिवरात्रि के विषय में मान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार, इस दिन सागर मंथन हुआ था और जिसमें से कालकेतु विष निकला था। उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही पूरा विष पी लिया था। जिस कारण उनका पूरा कंठ नीला हो गया था। विषपान के बाद से ही उन्हें नीलकंठ की संज्ञा दी गई। अन्य मान्यताओं में इस दिन को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाने की परंपरा रही है।